हिण्डौन सिटी। सूरौठ निवासी डॉ घनश्याम व्यास (पूर्व अतिरिक्त निदेशक आयुर्वेद विभाग एवं समता आयुर्वेद प्रकोष्ठ भरतपुर के संभाग प्रभारी) ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं आयुष मंत्रालय को पत्र लिखकर आयुर्वेद को राष्ट्रीय चिकित्सा का दर्जा देने की मांग की है।
पत्र में डॉ घनश्याम व्यास ने बताया है कि भारत की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति है और आयुर्वेद ऋषियों द्वारा कायचिकित्सा एवं शल्य चिकित्सा के माध्यम से चिकित्सा प्राचीन समय से होती आ रही है। आचार्य चरक ने कायचिकित्सा एवं सुश्रुत ने शल्य (सर्जरी) चिकित्सा ग्रंथों का निर्माण किया। चरक एक विशारद के रूप में विख्यात है चरक में रोग नाशक एवं रोग निरोधक दवाओं का उल्लेख है। आचार्य सुश्रुत को शल्य (सर्जरी)चिकित्सा के जनक कहा जाता है। आयुर्वेद चिकित्सा भारत का गौरव रहा है ,लेकिन आयुर्वेद चिकित्सा के साथ निरंतर सौतेला व्यवहार हो रहा है आयुर्वेद को बहुत कम बजट आवंटित किया जाता है। बजट के अभाव में आयुर्वेद औषधियों के रिसर्च में परेशानियों का सामना करना पड़ता है इसलिए आयुर्वेद का बजट बढ़ाया जाए। पत्र में आगे बताया है कि आयुर्वेद के रस, भस्मो, के माध्यम से जटिल से जटिल रोगों का निदान संभव है। नाड़ी परीक्षण के माध्यम से रोग का निदान आयुर्वेद के द्वारा ही किया जाता है। अन्य पद्धतियां नारी परीक्षण के द्वारा निदान नहीं कर पाती है। कोरोनावायरस के संक्रमण की त्रासदी में संपूर्ण भारत वर्ष में आयुर्वेद औषधि युक्त काढ़ा सबसे ज्यादा उपयोगी व सफल चिकित्सा के रूप में सिद्ध हो रहा है। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में बहुत ही कारगर सिद्ध हो रहा है। आयुर्वेद औषधियों का शरीर पर दुष्परिणाम नहीं होता है। इस समय आयुर्वेद की प्रमुख औषधि अश्वगंधा गिलोय, च्यवनप्राश, सोंठ काली मिर्च, तुलसी पत्र, गोजिव्हादि क्वाथ, वात्सलेष्मिक ज्वर हर क्वाथ, महासुदर्शन चूर्ण, फलत्रिकादि क्वाथ, आदि प्रमुख औषधियां कोरोना के संक्रमण में चिकित्सा के रूप में विशेष लाभदायक है। रोग प्रतिरोधक क्षमता सभी संक्रमण को रोकने में पूर्ण सक्षम है, आयुर्वेद औषधियों के चिकित्सा से सर्वश्रेष्ठ परिणाम आ रहे हैं इसलिए आयुर्वेद चिकित्सा को भारत की राष्ट्रीय चिकित्सा घोषित
की जाए।
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