जयपुर। धर्म नगरी जयपुर शहर के विश्व विख्यात जैन तीर्थ अतिशय क्षेत्र बाड़ा पदमपुरा दिगम्बर जैन मंदिर में विराजमान गणिनी आर्यिका गौरवमती माताजी ससंघ सानिध्य में दशलक्षण पर्व का दूसरे दिन सोमवार को " उत्तम मार्दव धर्म " श्रद्धा-भक्ति के साथ मनाया गया। मंगलवार को तीसरे दिन " उत्तम आर्जव धर्म " मनाया जाएगा।
मीडिया प्रभारी अभिषेक जैन बिट्टू के अनुसार उत्तम मार्दव धर्म का महत्व बताते हुए गणिनी आर्यिका गौरवमती माताजी ने अपने आशीर्वचन में कहा कि " मृदो: भाव: कर्म पा मार्दव इति निस्कते। अर्थात मानसिक कोमलता का नाम मार्दव है और कोमलता और व्यवहार में नम्रता होना मार्दव धर्म है। मार्दव धर्म में सिद्धि के लिए जाति कुलादि के मद का त्याग करना आवश्यक होता है। ज्ञान, पूजा, कुल, जाति, बल, रिद्धि, पत , शरीर इन आठ वस्तुओ का अभिमान नहीं करना मार्दव है समस्त मानव प्राणी के मन में यह भाव रहता है कि लोग मुझे अच्छा भला इंसान कहे और मेरा सम्मान करे, मेरी हर वास्तु की प्रशंसा करे, मेरे पास जो ज्ञान, कला, वैभव है वह किसी और के पास तो हो नहीं सकती। इस तरह के भाव मान कषाय के कारण आते है। अर्थात व्यक्ति कभी खुद नहीं झुकता, दुसरो से चेष्टा करता है। " मृदुता का भाव ही उत्तम मार्दव धर्म है, मान का नाश करता है मार्दव धर्म, विनय भाव सिखलाता है मार्दव धर्म ज्ञान की योग्यता बढ़ाता है मार्दव धर्म। भगवान के आगे ढुरने वाले चॅवर भी हमे ज्ञान की बात सिखाते है। वो कहते है - हम झुकते है ऊपर उठते है अर्थात जो जितना झुकेगा वो उतना ऊपर उठेगा। अधिकांशतया हमारा प्रयास दूसरों को झुकाने में लगा रहता है अगर हम थोड़ा सा झुक जाए तो सामने वाला पुरा ही झुक जाएगा किन्तु - " झुकता तो वही है जिसमे जान होती है वरना अकड़ तो मुर्दे की पहचान होती है। रावण की मान कषाय ने ही उसके प्राणों का वियोग करवाया। गुरु के चरणों में अगर रहकर शिष्य ज्ञान प्राप्त करे तो हो सकता है, लेकिन अगर वही शिष्य गुरु के सिर पर खड़ा होकर ज्ञान प्राप्त करना चाहे तो नहीं प्राप्त कर सकता है।
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